पॉडकास्ट होस्ट रणवीर इलाहाबादिया हाल ही में कॉमेडियन समय रैना के शो में एक विवादित टिप्पणी को लेकर सुर्खियों में आ गए हैं। उनके भद्दे मज़ाक पर तीखी प्रतिक्रियाएँ सामने आईं, जिसके बाद दो राज्यों में उनके खिलाफ एफ़आईआर दर्ज की गई। इस विवाद का असर उनकी प्रोफेशनल लाइफ पर भी पड़ा—गायक बी प्राक ने उनके पॉडकास्ट पर आने से इनकार कर दिया, और वह कई ब्रांड डील्स भी खो सकते हैं। सोशल मीडिया पर उनकी फॉलोइंग में गिरावट देखी गई, जिससे उनकी डिजिटल छवि को झटका लगा है। बढ़ते विवाद के बीच रणवीर ने एक माफ़ीनामा वीडियो जारी कर अपनी गलती स्वीकार की, वहीं, होस्ट समय रैना ने आलोचनाओं के चलते शो के सभी वीडियो हटा दिए हैं।
रणवीर इलाहाबादिया का मज़ाक निश्चित रूप से आपत्तिजनक था, लेकिन क्या हम आजकल ज़रूरत से ज़्यादा जल्दी आक्रोशित हो जाते हैं? सोशल मीडिया पर किसी की गलती को मीम फेस्ट या विच हंट बना देना आम हो गया है। कुछ ही घंटों में सेलेब्रिटीज़, फिल्म निर्माता, पुलिस और यहां तक कि मुख्यमंत्री तक ने प्रतिक्रिया दे दी, जबकि गंभीर मुद्दे अक्सर अनदेखे रह जाते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह विवाद सिर्फ एक गलती तक सीमित रहेगा या नए मीडिया और कंटेंट क्रिएटर्स पर सख्त सेंसरशिप लागू करने का जरिया बन जाएगा?
यह पहली बार नहीं है जब किसी कंटेंट को लेकर इतना विवाद हुआ हो। 2015 में AIB Knockout रोस्ट को अभद्र भाषा और आपत्तिजनक जोक्स के कारण तीखी आलोचना झेलनी पड़ी थी, जिसके बाद एफ़आईआर दर्ज हुई और वीडियो हटाना पड़ा। तांडव वेब सीरीज़ भी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोपों में घिरी, जिससे निर्माता, निर्देशक और कलाकारों पर केस दर्ज हुआ और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने हस्तक्षेप किया। पिछले साल अन्नपूर्णाणी: द गॉडेस ऑफ फूड को भी धार्मिक विवादों के चलते नेटफ्लिक्स से हटा दिया गया।
यह दिलचस्प है कि इंडियाज गॉट लैटेंट पहले भी कई विवादों में रहा है। कभी समय रैना ने कुशा कपिला का मज़ाक उड़ाया, तो कभी ऊर्फी जावेद एक प्रतियोगी द्वारा मिया खलीफा से तुलना किए जाने पर नाराज़ होकर सेट छोड़ गईं। वहीं, स्टैंड-अप कॉमेडियन बंटी बनर्जी ने दीपिका पादुकोण के डिप्रेशन पर तंज कसकर नया विवाद खड़ा कर दिया। ऐसे में सवाल उठता है—जब बार-बार ऐसी घटनाएँ हो रही थीं, तो पहले कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया गया?
हम इंसान दूसरों के निजी जीवन में झांकने और हर छोटी बात पर चर्चा करने की आदत से बंधे हैं—चाहे वह परिवार हो, सहकर्मी हों या मशहूर हस्तियां, जिनसे हमारा कोई सीधा संबंध नहीं। सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनल इस प्रवृत्ति को और हवा देते हैं, हर मामूली घटना को बड़े विवाद में बदल देते हैं। लेकिन सवाल यह है कि अगर सिर्फ भद्दे मजाक पर गिरफ़्तारी होने लगे, तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भविष्य क्या होगा?