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सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त उपहारों पर आपत्ति जताई, बेघर लोगों के लिए आश्रय की जरूरत पर जोर दिया

सुप्रीम कोर्ट ने बेघर लोगों के लिए आश्रय उपलब्ध कराने की मांग करने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान चुनावों से पहले मुफ्त उपहारों की घोषणा की प्रवृत्ति पर असंतोष व्यक्त किया। अदालत ने कहा कि इस तरह की योजनाओं के कारण कई लोग अब काम करने के प्रति रुचि नहीं दिखा रहे हैं, क्योंकि उन्हें मुफ्त राशन और आर्थिक सहायता मिल रही है।

जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने शहरी क्षेत्रों में बेघर लोगों के आश्रय अधिकार से संबंधित याचिका पर सुनवाई के दौरान अपनी चिंता व्यक्त की। अटॉर्नी जनरल आर. वेंकट्रमणि ने अदालत को अवगत कराया कि केंद्र सरकार शहरी गरीबी मिशन को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है, जिसमें बेघर लोगों के लिए आश्रय सहित कई अन्य मुद्दों का समाधान किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद निर्धारित की है। सुनवाई के दौरान जस्टिस बी.आर. गवई ने कहा कि मुफ्त सुविधाओं की वजह से लोग काम करने के प्रति अनिच्छुक हो रहे हैं, जो एक गंभीर चिंता का विषय है।

कड़ाके की ठंड से 750 लोगों की जान गई

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोगों को बिना किसी श्रम के मुफ्त राशन और आर्थिक सहायता मिल रही है, जिससे वे काम करने के प्रति रुचि नहीं दिखा रहे हैं। अदालत ने अटॉर्नी जनरल को निर्देश दिया कि वे केंद्र सरकार से यह स्पष्ट करने को कहें कि शहरी गरीबी उन्मूलन मिशन को लागू करने में कितना समय लगेगा। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट को बताया कि सरकार ने शहरी क्षेत्रों में आश्रय स्थलों के लिए वित्तीय सहायता रोक दी है, जिसके कारण इस सर्दी में 750 लोगों की ठंड से मौत हो चुकी है।

प्रशांत भूषण ने दलील दी कि गरीबों की समस्याओं की अनदेखी की जा रही है, जबकि अमीरों के हितों को प्राथमिकता दी जाती है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि अदालत में राजनीतिक टिप्पणियों की कोई जगह नहीं है। न्यायालय ने आगे कहा कि वह कमजोर वर्गों के प्रति उनकी चिंता को समझता है, लेकिन मुफ्त राशन और आर्थिक सहायता देने की बजाय, इन लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने और देश के विकास में भागीदार बनाने पर जोर दिया जाना चाहिए।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने प्रशांत भूषण से सवाल किया कि सड़क पर सोने की स्थिति बेहतर है या रहने योग्य आश्रय गृह उपलब्ध कराना? इस पर अटॉर्नी जनरल ने सुझाव दिया कि इस मुद्दे पर एमिकस क्यूरी नियुक्त किया जा सकता है, जिससे राज्यों को पेश आ रही चुनौतियों का समाधान निकाला जा सके। उन्होंने जोर दिया कि यह कोई विरोध का मामला नहीं, बल्कि व्यावहारिक समाधान खोजने का विषय है। भूषण ने बताया कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार 4 दिसंबर तक 2,557 आश्रय गृह स्वीकृत किए गए हैं, जिनमें से 1,995 कार्यरत हैं। उन्होंने यह भी बताया कि अकेले दिल्ली में करीब तीन लाख लोग बेघर हैं।

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